And I encountered the best Lullaby tonight,
The sound of your breath and that heavy sigh.
Tuesday, 22 May 2018
Monday, 14 May 2018
कलियुग
वो सदैव एक जैसा आसमान सा,
रो पड़े पर - पीड़ा में एक ऐसी निश्छल संतान सा।
वो प्रवाह मानों अविरल सतत् प्रपात का,
उद्गम जिसका पर्वत, विस्तार जिसका पठार सा।
वो विश्राम करता छितिज पर,
और तेज उसका सूर्य नमस्कार सा।
जैसे भयावह अग्नि-वर्षा भूगर्भ की,
वो शांत होता ज्वालामुखी प्रवाह सा।
मानो अंधकार अनंत ब्रह्माण्ड सा,
वो उज्जवलता लिए किसी बिजली के तार सा।
वो अद्भुत प्रचंडता लिए महादेव जैसी,
माता की पहरेदारी करता शिव पुत्र एकदंत, विघ्न- नाश सा।
वो विस्मृत की हुई अपनी श्रेष्ठताओं जैसा,
हनुमान के हृदय में वास करता श्रीराम सा।
वो अनुज साक्षात लक्ष्मण सादृष्य,
अग्नि परीक्षा देता वह सीता के मान सा।
उसका निर्माण रामसेतु भांति,
मनोबल मानो जामवंत व सुग्रीव जैसे वानर राज सा।
वो निरंतर प्रयासरत जटायु सा,
उसका वर्णन रामायण के सुंदर काण्ड सा।
वो कुरूक्षेत्र युद्ध के परिणाम समान,
जैसे पार्थ को गीतोपदेश देते श्रीकृष्ण भगवान सा,
वो मुरलीधर, चक्रधारी, सुदामा मित्र,
और माखन चोरी करता राधा के श्याम सा।
वो ये सारे गुण स्वयं में घेरे,
इस कलियुग के किसी निरीह इंसान सा।
वो ना अवतार है किसी और का,
बस मानवता लिए कोई है हम और आप सा।।