Kagaj Kalam Dawat
Monday, 17 August 2020
mohabbat
किसी ने मोहब्बत को चांद सा बताया और किसी ने चांदनी ठहराया,
हमने तो मोहब्बत को एक झरने सा पाया,
जो पहाड़ों से निकलकर सागर तक आया,
पर ना पहाड़ सागर से ना सागर पहाड़ से मिल पाया ।
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