छोड़कर एक हरा भरा घर, बन्द कमरे में रहना कुछ ऐसा लगता है,
कि सूरज खड़ा हो सामने पर जैसे रोशनी करने से डरता है।
यूं रात बे रात उठकर , ऐसे लिखना किसको अच्छा लगता है,
जब पास ना हो कोई तो हंसना किसको अच्छा लगता है।।
जब रात में आंखे खुलती हैं और सन्नाटा सा दिखाई देता है,
तब करवटें बदल कर सोने की कोशिश करना किसको अच्छा लगता है।
हार गए हम खुद से और दुनिया के इस दस्तूर से,
वरना छोटी सी ज़िन्दगी में बार बार मरना किसको अच्छा लगता है।।
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