कि आज आग भी शर्मिंदा है,
क्यूं जला दिए वो ख़्वाब जो उनकी आंखों में ज़िंदा है ।
वो ऊंचाई भी बस रो देती है,
जहां से कूद कर नन्हीं जानें सांसें खो देती हैं।।
अब आंसू भी उनके सूख गए हैं,
जिनके जिगर के टुकड़े उनसे दूर गए हैं।
कल का सूरज बनकर जिनको उगना था,
आसमान में टिमटिमाने को तारे बनकर आज गए हैं।।
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