Sunday, 19 September 2021

पैग़ाम



इक लंबा अरसा बिताने के बाद,
हर छोटी सी छोटी बात बताने के साथ,
मेरी डायरी के हर पन्ने पर एक नाम लिखा है,
तुझसे शुरू और तुझसे ख़त्म एक पैग़ाम लिखा है।

हज़ारों क़िस्से, कहानियां और तराने के बाद,
यूं झुकती पलकों को फिर से उठाने के साथ,
अपनी ख्वाहिशों को मैंने तमाम लिखा है,
तुझसे शुरू और तुझसे ख़त्म एक पैग़ाम लिखा है।

दरम्यान हर फासले को मिटाने के बाद,
इस धूप में ये तिशनगी बुझाने के साथ,
हर मयखाने में जाकर दिनभर शाम लिखा है,
तुझसे शुरू और तुझसे ख़त्म एक पैग़ाम लिखा है।

बेमुरव्वत इस जवानी के गुज़रने के बाद,
मेरी धड़कनों और तेरी सांसों का साथ,
इस जमीं और दूर तलक आसमां के पास लिखा है,
तुझसे शुरू और तुझसे ख़त्म एक पैग़ाम लिखा है।

Monday, 13 September 2021

खामोशी


इक ख़ामोशी सी पसरी है, दूर तलक सन्नाटा है
मैं इक अनजानी सी नींद ओढ़े, हर कोई मुझे जगाता है।

हर कोई मुझे जगाता है, बिन बात के हर बात में मुझे बुलाता है
वो जो भूला बैठा था मुझको,मेरे ही किस्से सबको अब सुनाता है।

वो किस्से सबको अब सुनाता है, शायद मन ही मन पछताता है
मेरी लंबी इस ज़िंदगी का, दो शब्दों में सारांश वो बताता है।

दो शब्दों का वो सारांश, मेरे दिल को अंदर से छू जाता है,
जी करता है रो लूं उठकर, पर ये जिस्म उतना ही जकड़ा जाता है।

जिस्म जकड़ा जाता है, रूह का साथ ख़ुद ब ख़ुद धुंधलाता है
कि अब सफर जिस्म का ख़त्म होकर ,बरज़ख़ ढूंढा जाता है।

बरज़ख़ को तो मिलना है, पर मेरा वक्त यही थम जाता है
ये जो घेरे बैठें हैं मुझको, हर कोई तारीफें क्यों बतलाता है।

अनसुनी सी तारीफें लगती, ये दस्तूर समझ नहीं आता है
ख़्याल आया सबसे पूछूं , पर अब यूं सोना ही मुझको भाता है।

इक ख़ामोशी सी पसरी है, दूर तलक सन्नाटा है
मैं इक अनजानी सी नींद ओढ़े, हर कोई मुझे जगाता है।
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बरज़ख़- जन्नत ( स्वर्ग ) और दोजख ( नर्क ) से पहले का स्थान