कि इस मोहब्बत को अब बेनाम ही रहने दो,
वो जो सुबह का साथ था ,उसे शाम ही रहने दो।
इज़हार, इंकार, इक़रार और फिर शायरी में शुमार ही रहने दो।।
दर्ज किया था तुमको जिन पन्नों पर,
उस किताब को अब दरकिनार ही रहने दो। तू है तो जैसे दरक्षा है हयात,
इसको तो बस गुलज़ार ही रहने दो।
ये जो चांद की चांदनी के मुरीद है ना लोग,
इस रोशनी के पीछे सूरज को गुमनाम ही रहने दो।
कि इस मोहब्बत को अब बेनाम ही रहने दो।।
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