इज्ज़त हो तुम इस घर की,
इज्ज़त तुमसे ही हम सबकी।
जो यूं बोलते रहते हो तुम,
क्या इज्ज़त करते हो इसकी!!
शाम ढ़ले तो घर आ जाना,
ज़्यादा देर तुम मत लगाना,
ये कहते हो तुम बेटी से,
बेटे को भी तो थोड़ा समझाना।
चलो ज़िम्मेदारी लूंगी मैं सबकी,
मां, बहन ,बेटी और पत्नी,
सब अच्छे से निभाऊंगी,
पर जब कहीं खुद गिर जाऊंगी,
क्या तुम सबको खड़ा पाऊंगी ??
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