Tuesday, 31 July 2018

Seashore

He drowned in the ocean of her love,
But she always craved for the seashore...

Wednesday, 25 July 2018

रास्ता

वो रास्ता ही अधूरा निकला जिसका रास्ता तुम हमें बता गए,
ना ' हमसफ़र ' रहा , ना ' सफर' रहा और ना अब ' हम' ही रह गए।

Friday, 13 July 2018

चलना कितना मुश्किल है

कभी साथ चलो तो पता चले कि चलना कितना मुश्किल है,
उन भीड़ भरी या सन्नाटी सड़कों पर निकलना कितना मुश्किल है।
वो जगती रातें और तन्हा सांसे जब कदम साथ बढ़ाती हैं,
कुछ अनचाहा होने के डर से खुद ब खुद रुक जाती है।
दिन में जब सूरज को साथ लेकर भी चलती हूं,
कुछ घूरती नज़रों के सामने से जब निकलती हूं,
पेड़ के नीचे या गाड़ी में बैठे वो लोग तो वहीं रह जाते हैं,
पर आगे ऐसी नज़र ना होगी खुद को ये समझाना कितना मुश्किल  है।
चलो एक दिन के लिए तुम बन जाओ मैं और मैं तुम जैसा बन जाती हूं,
शायद तब पता चले कि ये बातें तुमको कैसे सुकून दिलाती हैं,
जब चौराहों पर खड़े होकर कुछ दूर पीछा तुम्हारा करूंगी,
तुम असहाय सा महसूस करोगे और मैं कुछ पल थोड़ा हंसूंगी।
क्या पता उस सुख का आनंद तब मुझे मिले जो तुमको अक्सर मिलता है,
और तुमको तब पता चले कि लड़की को कब लड़की होना खलता है।
ख़ैर, ये तो फितरत है, समझती हूं तुम्हारे लिए बदल पाना कितना मुश्किल है,
पर हां, कभी मेरे साथ चलो तो पता चले की चलना कितना मुश्किल है।।

Thursday, 12 July 2018

तेरे जैसा

एक हश्र ए अंजाम कुछ ऐसा हो,
कदम मेरे हों तो रास्ता तेरे जैसा हो।
वो चांद फलक पर कुछ ऐसा हो,
रात अंधेरी हो तो सन्नाटा तेरे जैसा हो।
वो अंदाज़ ए बयां कुछ ऐसा हो,
कलम मेरी हो तो पन्ना तेरे जैसा हो।
वो साथ हमारा कुछ ऐसा हो,
तू मेरा हो और मेरा सब कुछ तेरे जैसा हो।

 

Monday, 9 July 2018

Quit

And I quit on you,
I quit on this flimflam,
I quit on this hollow feelings,
I quit on this futile relationship,
And hence,
I quit on me....
I quit on us....

Friday, 6 July 2018

Water

I hold you like water bounded on my fist,
Even when you pour out, your parts remain in me...
That too more adhesively....

Sunday, 1 July 2018

मिसरा

वो क़ाफिया मेरे मिसरों का,
बिन मक़ता अपनी कहानी।
मैं मिसर- ए - ऊला उसकी ,
वो मेरा मिसर-ओ-सानी ।

क़ाफिया - तुकबंदी
मिसरा - शेर की एक पंक्ति
मक़ता - ग़ज़ल का आख़िरी शेर जिसमें शायर का नाम हो
मिसर ए ऊला  - शेर की पहली पंक्ति
मिसर ओ सानी - शेर की आख़िरी पंक्ति

My world

I have changed the way I was,
Or may be the time did it for me...
I count my breath when I sit alone,
Or it is just a plain face that I can see..
I wander the whole world even by closing my eyes,
Or perhaps it's you who make it complete .