वो क़ाफिया मेरे मिसरों का,
बिन मक़ता अपनी कहानी।
मैं मिसर- ए - ऊला उसकी ,
वो मेरा मिसर-ओ-सानी ।
क़ाफिया - तुकबंदी
मिसरा - शेर की एक पंक्ति
मक़ता - ग़ज़ल का आख़िरी शेर जिसमें शायर का नाम हो
मिसर ए ऊला - शेर की पहली पंक्ति
मिसर ओ सानी - शेर की आख़िरी पंक्ति
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