Saturday, 10 February 2018

चलो साथ चलते हैं

चलो कुछ रूहानियत इस रिश्ते में रखते हैं,
एक बार फिर उस पहले दिन की तरह मिलते हैं।
किताब के अंदर बंद उस निशानी की तरह,
चलो आज फिर एक-एक हर्फ साथ पढ़ते हैं।
कश्ती में बैठ, मंज़िल तक पहुंचने से पहले,
चलो समंदर की रेत पर एक दूसरे का नाम लिखते हैं।
यूं तो रोज़ ही मुलाक़ात होती है ख़्वाबों में तुमसे,
चलो कभी सामने बैठकर नज़रों से भी बातें करते हैं।।

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