जब आईना देखती हूं तो अब कुछ अलग सा नज़र आता है,
इन उड़ती ज़ुल्फो में फंसी हुई तुम्हारी उंगलियां,
बालों की लंबाई के बराबर जब सफर तय करके ,
थक कर गर्दन पर आराम करती हैं,
तो हां, आइने में बहुत कुछ अलग सा नज़र आता है।
अब मेरी सूरत में भी तेरा अक्स नज़र आता है,
इन आंखों की नमी में भी तेरा चेहरा उभर आता है।
अब मेरी धड़कन की चाल भी तेरे क़दमों की आवाज़ से कुछ यूं रंजिश करती है,
कि कहीं पीछे ना छूट जाए इसलिए हमेशा उसके साथ ही चलती है।
तेरा मेरी ज़िन्दगी में मुस्तकिल हो जाना अब कुछ यूं समझ आता है,
मेरे क़दम आगे बढ़ते रहते हैं और ये दिल कहीं पीछे छूट जाता है।
एहतराम करते हैं उन लम्हों का जो तेरे साथ गुज़ारे थे,
होंठ जब चुप रहते थे और आंखों के ख़ेल सारे थे।
हां, अब जीतने से ज़्यादा तुमसे हारने में मज़ा आता है,
तभी शायद आइने में अब कुछ अलग सा नज़र आता है।।
Tuesday, 13 February 2018
आईना
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment